
गोविंदपुरा सीट का ये है सच, आखिर क्यों है BJP मुश्किल में...
भोपाल। इन दिनों मध्यप्रदेश में राजनैतिक माहौल अपनी पूरी गरमी में है। वहीं इस बार जो सीट सबसे अधिक चर्चा में है, वो है भोपाल की गोविंदपुरा विधानसभा सीट...
इस किले के अपराजय योद्धा पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर 88 साल की उम्र में भी चुस्त-दुरुस्त नजर आते हैं, वे कहते भी है कि अकेले विकास से वोट नहीं मिला करते। चुनाव में विकास से ज्यादा आपका व्यवहार देखा जाता है।
ज्ञात हो कि गोविंदपुरा विधानसभा सीट भोपाल जिले में आती है। यहां के 50 फीसदी वोटर्स पिछड़ी जाति से है। ये बीजेपी के परंपरागत वोटर हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रदेश में मुख्यमंत्री बदले, लेकिन 1974 के बाद से गोविंदपुरा का विधायक नहीं बदला।
गोविंदपुरा के सियासी इतिहास की बात की जाए तो बाबूलाल गौर यहां पहली बार 1974 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे थे और तीर-कमान चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़कर पहली बार में ही जीत हासिल की।
पूर्व मुख्यंत्री बाबूलाल गौर के अभेद किले को भेदने के लिए हर बार कांग्रेस ने ऐढ़ी-चोटी का जोर लगाया। कभी स्थानीय तो कभी बाहरी प्रत्याशी को तक को मैदान में उतारा। लेकिन हर बार कांग्रेस को कड़ी शिकस्त खानी पड़ी।
कांग्रेस इस बार फिर विकास के मॉडल पर बीजेपी को चैलेंज करने की तैयारी में है वहीं बीजेपी में भी इस बार बाबूलाल गौर के अलावा संभावित उम्मीदवारों की लंबी लिस्ट सामने है। यानी मौजूदा विधायक की राह इस बार इतनी आसान नजर नहीं आती।
इन्हें भी दी थी शिकस्त...
- इसके बाद 1998 के चुनाव में बाबूलाल गौर ने कांग्रेस के करनैल सिंह को हराया।
- 2003 में उन्होंने कांग्रेस के शिवकुमार उरमलिया को शिकस्त दी।
- वहीं 2008 के चुनाव में बाबूलाल गौर ने कांग्रेस की विभा पटेल को हराकर विधानसभा पहुंचे।
- 2013 में गौर फिर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े। इस बार उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी गोविंद गोयल को हराया। इस चुनाव में बीजेपी को जहां 1 लाख 16 हजार 586 वोट मिले। वहीं कांग्रेस महज 45 हजार 942 वोट ले सकी। जीत का अंतर 70 हजार 644 रहा।
अब जब 2018 का सियासी महासमर नजदीक है तो बाबूलाल गौर 11वीं बार चुनाव मैदान में ताल ठोंकने के लिए तैयार है, लेकिन भाजपा इस बार उन्हें टिकट देती नहीं दिख रही है।
पहली बार 1974 में तीर कमान, इसके बाद जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते आ रहे बाबूलाल गौर एक बार फिर चुनाव लड़ने की बात कही और सूत्रों के अनुसार न सिर्फ ये बात कही बल्कि चुनाव के मद्देनजर सक्रिय भी हो गए हैं। पार्टी की गाइड लाइन और कायदे-कानून अपनी जगह हैं। लेकिन बाबूलाल गौर ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है।
वहीं जानकारों की माने तो भोपाल की हाईप्रोफाइल गोविंदपुरा सीट से टिकट हासिल करने के लिए दावेदारों में ज़बरदस्त मारामारी है। इस सीट से बीजेपी के वेटरन लीडर बाबूलाल गौर विधायक हैं। मंत्री पद खो चुके गौर के हाथ से इस बार टिकट भी जाता दिख रहा है। इसलिए मारामारी ज़्यादा है. मज़ेदार बात ये है कि दावेदारों में खुद गौर के साथ उनकी बहू कृष्णा गौर भी शामिल हैं।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर के समर्थन में सोशल मीडिया में जोर-शोर से कैंपेन चल रहा है। फिलहाल इस सीट से खुद बाबूलाल गौर विधायक हैं। गोविंदपुरा सीट से बीजेपी के सिटिंग एमएलए बाबूलाल गौर तो दावेदार हैं ही, उनकी बहू कृष्णा गौर का दावा भी मज़बूत है। उनके साथ ही भोपाल मेयर आलोक शर्मा, बीजेपी पार्षद केवल मिश्रा और पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष तपन भौमिक भी दावेदारों की लाइन में खड़े बताए जाते हैं।
इस सीट से बाबूलाल गौर के अलावा बीजेपी से ही दर्जनभर नेताओं ने दावेदारी ठोक दी है। हालांकि प्रमुख दावेदार गिने-चुने ही हैं। गौर के उत्तराधिकारी के रूप में पहला नाम उनकी ही पुत्रवधू यानी कृष्णा गौर का बताया जा रहा है। गौर जब नगरीय प्रशासन मंत्री थे। तब कृष्णा गौर भोपाल की महापौर बनकर परिवार की राजनीतिक बिसात को आगे बढ़ा चुकी हैं।
इसके अलावा गोविंदपुरा क्षेत्र में चल रही बीजेपी की विकास यात्रा की कमान भी खुद कृष्णा गौर ने संभाली हुई हैं।
कांग्रेस में भी लंबी लिस्ट...
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस में भी टिकट के संभावित उम्मीदवारों की लंबी लिस्ट है। इसमें सबसे पहला नाम रामबाबू शर्मा का है, जिनकी व्यापारियों में अच्छी पकड़ है। वहीं 2013 में बाबूलाल गौर से परास्त हो चुके गोविंद गोयल भी टिकट की मांग कर रहे हैं। इन दोनों के अलावा पूर्व महापौर विभा पटेल, पक्षकुमार खामरा, प्रदीप शर्मा, किशन राजपूत, जेपी धनोपिया और महेश मालवीय भी टिकट की रेस में शामिल हैं।
कांग्रेस की अपनी तैयारी है, साथ ही इस बार गौर की परंपरागत सीट पर उनकी ही पार्टी के नेताओं की नजरें गढ़ी हुई हैं। लेकिन बाबू लाल गौर हैं कि ग्यारहवीं बार जीतकर अपना ही रिकॉर्ड तोड़ने का दावा कर रहे हैं और इसी रिकॉर्ड के लिए वो टिकट की मांग कर रहे हैं।
उम्र का तकाजा देकर बीजेपी पहले ही बाबूलाल गौर से मंत्री पद छीन चुकी है। गोविंदपुरा से बीजेपी के दूसरे दावेदारों ने भी पहली बार खुले तौर पर गोविंदपुरा से टिकिट की मांग कर डाली है। वहीं सूत्रों के अनुसार पीसीसी चीफ कमलनाथ की सीधी नजर भी बीजेपी के गढ़ यानी गोविंदपुरा सीट पर है।
मज़ेदार बात ये है कि दावेदारी पार्टी दफ्तरों में ही नहीं सोशल मीडिया पर भी खूब दिख रही है. ये भी कम दिलचस्प नहीं है कि नेता ही नहीं बल्कि उनके समर्थक भी अपने-अपने चहेते नेताओं की दावेदारी के लिए सोशल मीडिया पर दम दिखा रहे हैं। भोपाल की हाईप्रोफाइल गोविंदपुरा सीट पर दावेदारी की कुछ ऐसी ही बातें सामने आ रही हैं।
ऐसे समझें गोविंदपुरा सीट को...
प्रदेश में मुख्यमंत्री बदले, लेकिन 1974 के बाद से गोविंदपुरा का विधायक नहीं बदला। बावजूद इसके विकास के मामले में गोविंदपुरा काफी पीछे है। आलम ये है कि आज भी यहां सड़क, स्वास्थ्य, बिजली और पानी जैसे मुद्दों पर ही चुनाव लड़े जाते हैं।
इसके बावजूद भोपाल जिले में आने वाली गोविंदपुरा विधानसभा सीट का जब भी नाम लिया जाता है तो एक ही चेहरा सामने आता है। वे हैं 88 साल के बाबूलाल गौर, जो पिछले 44 सालों से गोविंदपुरा विधानसभा सीट से विधायक हैं।
कांग्रेस के नेता भले विधायक पर विकास नहीं करने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन बाबूलाल गौर हैं कि कोई उन्हें तमाम कोशिशों के बावजूद शिकस्त नहीं दे पाता।
इस सीट पर पिछले 44 साल से एक ही उम्मीदवार जीतते आ रहा है। अगर कहें कि ये सीट किसी पार्टी नहीं बल्कि एक खास नेता का गढ़ है तो गलत नहीं होगा। बीजेपी के दिग्गज नेता बाबूलाल गौर पिछले 44 साल से इस सीट से विधायक हैं।
गोविंदपुरा की अहमितयत
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की एक अहम सीट मानी जाती है गोविंदपुरा। यहां के 50 फीसदी मतदाता पिछड़ी जातियों से आते हैं। यहां पिछले 44 सालों से बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर जीत दर्ज करते रहें हैं। इस वजह से गोविंदपुरा को बीजेपी की सबसे सुरक्षित सीट माना जाता है।
हालांकि, उम्र को देखते हुए अगर बीजेपी बाबूलाल को टिकट नहीं देती है तो उनकी बहू कृष्णा गौर फिलहाल टिकट की दौड़ में सबसे ऊपर हैं। इसी आशंका से जमीनी कार्यकर्ता नाराज हैं।
ये है खास...
राजनीति के जानकारों की मानें तो ये सीट भाजपा के लिए बहुत अहम है, गौर को या उनके मनपसंद को टिकट न देकर यदि भाजपा अलग चलने की कोशिश करती है तो उसे यहां काफी मुश्किल का सामना करना पड़ेगा। वहीं यदि गौर बागी हो जाते हैं, तो तकरीबन ये पक्का है कि ये सीट भाजपा के हाथ से सरक जाएगी।
वहीं पूर्व में गौर इसका संकेत भी दे चुके हैं कि उन्हें कांग्रेस से भी आॅफर आ चुका है। वहीं उनके लगातार तीव्र विरोध के चलते भाजपा अब तक यहां का प्रत्याशी घोषित नहीं कर सकी है।
Updated on:
12 Nov 2018 02:51 pm
Published on:
08 Nov 2018 12:51 pm
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